*”सपना हो पर अपना हो”*

सपने उधार मत लीजिए। किसी के थोपे हुए सपने भी ठीक नहीं है।

जिस दिन आपके मस्तिष्क के सारे रसायन स्वप्रेरित प्रतिक्रिया के स्वरूप अर्द्धरात्रि में कोई बेसब्री आप में जगा दे, और सुबह का सूरज उगने से पहले आप के पास आगे बढ़ने का ‘ब्लूप्रिंट’ हो, तो समझ लीजिए एक ‘मिसाइल’ अपने ‘लॉन्चिंग स्टेशन’ पर ‘टारगेट’ को पाने के लिए ‘जीरो’ सुनने के लिए बेताब है।

किसी भी काम की सारी जटिलताएँ खत्म हो जाती है अगर हम उस काम को करने के लिए आत्मप्रेरित है।

आत्मप्रेरित व्यक्ति कभी घड़ी के अलार्म से नहीं जागता। वह सही समय के आने का इन्तजार नहीं करता बल्कि खराब समय में सीखने के लिए सही क्या है, उस पर मनन करता है। आत्मप्रेरित व्यक्ति दुनिया की गढ़ी हुई परिभाषाओं को बदलने के लिए जाने जाते हैं। वे अपने क्रोध का सदुपयोग करते हैं। उनका मस्तिष्क शान्त तूफान का घर होता है। वह रात को टेलिस्कोप से खुले आसमाँ को तलाशता है लेकिन जमीनी हकीकतों से रुबरू होने के लिए माइक्रोस्कोप का भी प्रयोग करता है।

सबसे बड़ी बात ये कि आत्मप्रेरित व्यक्ति का सपना खुद का अपना होता है। आत्मप्रेरित होकर आगे बढ़ रहे हो और पल भर के लिए रास्ते में कहीं भटक भी गये, तो आप खोयेंगे नहीं, बल्कि आत्मप्रेरणा की अद्भुत ताकत से उस रास्ते पर भटके और भी लोगों को सही रास्ते पर ले आयेंगे।

सृष्टि के सबसे ताकतवर तत्व, पिंड और उपादान आत्मप्रेरित हैं। यकीन नहीं होता है तो सूरज को ठंडा करने की कोशिश कर के देख लो। पूर्णिमा का चांद आपकी तारीफें सुन कर भी अपनी धुन में आगे निकल जाता है।

फिर हम चेहरे में चांद की कल्पना कर आत्ममुग्ध हो जाते है तो ये आत्मवंचना है।

*योग गुरू – डॉ. मिलिन्द्र त्रिपाठी*

(आरोग्य योग संकल्प केंद्र)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *